क्या अमीरी क्या गरीबी? क्या गरीबी क्या अमीरी?, मौत का साया खड़ा है। जन-जन से जान करके, राह सूने पर पड़ा है। जिस सड़क को हाथ से, समतल कर उसने बिछाया। आज पगपग नापता, यह रूप धरा पर कैसे आया? यह कौन अवधूत हैं, जो साथ इनके चल रहे हैं। मौत का साया बिछाए, यमदूत भी क्या चल रहे हैं? कौन समझे कौन जाने? दुख, विपत्ति और खाने। राह सबको चाहिए, राह-गीर से मतलब नहीं। पग-पग बिना चप्पल, वह, कांटो पर चलता जा रहा है। ज्वाला-धधकती गिट्टीयों पर, भारत सुलगता जा रहा है। ना भूख है ना प्यास है, आँखों में बस एक आश है। ना घर है, ना गांव है, पर गांव ही एक राह है। उन पूर्वजों के नाम से, गांवों का ही बस नाम है। दीपक सरीखे नाम के, केवल सहारे जा रहे हैं। गांव के मजदूर सारे, गांव वापस जा रहे हैं। जल रहे हैं मर रहे हैं, भूख-प्यास से तड़प रहे हैं। क्या करें मजबूर हैं वह, शहर के, बस मजदूर हैं वह। महलों को तैयार करते, करीने से उसको सजाते । ना कोई मतभेद रखते, ना कोई सपना संजोते। आज वह उपवास करके, भूखे स्वयं रह जाएंगे। भगवान जाने बच्चे उनके, आज फिर क्या खायेगें? वर्तमान आज उनका है, कल यही इतिहास होगा